स्त्रीधन कब और किन परिस्थितियों में लौटाएं, Stridhan in Hindu Law in Hindi

By | 29/06/2023

स्त्रीधन नाम से स्पष्ट होता है जो धन स्त्री का हो। यहां हमारा संबंध विवाह के उप समय कन्या को मिलने वाले उपहार चाहे वह पैसा हो या कोई वस्तु वह स्त्री धन की श्रेणी में आता है। उस उपहार पर पूर्ण रूप से कन्या का हक होता है। उसका भोग वर तथा वधू दोनों कर सकते हैं, लेकिन उसका स्वामित्व कन्या को होगा। कन्या इस स्त्रीधन पर सदैव पूर्ण हक रखेगी, चाहे विवाह की परिस्थिति कैसी भी हो।

स्त्री धन क्या है Stridhan in Hindu Law in Hindi

विवाह के समय कन्या को दिए गए दान-दहेज, उपहार, पैसे, ज्वेलरी समेत उन सभी पर कन्या का अधिकार होता है। इस धन को स्त्री धन के रूप में संबोधित किया गया है। अर्थात जो धन स्त्री का हो उसे हम स्त्रीधन कहते हैं। विवाह के उपरांत कन्या इन वस्तुओं तथा उपहार पर पूर्ण एकाधिकार रखती है। वह अपनी स्वेच्छा से उस उपहार का भोग अपने पति के साथ कर सकती है। वैवाहिक जीवन में कड़वाहट आने के उपरांत वह अपने स्त्रीधन की मांग भी कर सकती है। अर्थात किसी भी परिस्थिति में स्त्रीधन की प्राप्ति कन्या कर सकती है। भारतीय दंड संहिता आई.पी.सी 406 के तहत कन्या अपने स्त्री धन की मांग कानूनी रूप से करने के लिए स्वतंत्र है।

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स्त्रीधन के विषय में सुप्रीम कोर्ट की राय

सुप्रीम कोर्ट का स्त्रीधन के लिए स्पष्ट विचार है पत्नी चाहे न्यायिक अथवा किसी अन्य परिस्थिति में भी अलग रह रही हो, स्त्रीधन पर उसका पूर्ण अधिकार रहेगा। अगर कोर्ट में उसका मुकदमा चल रहा है या मुकदमा समाप्त होने के बाद भी वह स्त्रीधन पर अधिकार रखती है। स्त्रीधन को किसी भी परिस्थिति में प्राप्त करने का वह पूर्ण रूप से अधिकारी है।

स्त्रीधन किन परिस्थितियों में लौट आएं

आमतौर पर प्रचलन के अनुसार महिलाएं सर्वप्रथम नजदीकी थाने में घरेलू हिंसा तथा स्त्री धन लौटाने की शिकायत लिखती है। संबंधित थाने से मध्यस्था की पूरी कोशिश की जाती है। जब बात नहीं बनती तब महिला के आग्रह पर जांच अधिकारी स्त्री धन लौटाने की बात पति के समक्ष रखता है। यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि जांच अधिकारी आपसे सम्मान लौटाने का आग्रह करते हैं दबाव या आदेश नहीं कर सकते।

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पति की राय तथा समझ होनी चाहिए कि वह उन स्त्रीधन को थाने में जमा कराएं अथवा कोर्ट के माध्यम से जमा कराएं। अगर पति थाने में स्त्री धन को जमा कराने की मंशा रखता है तो एक लिस्ट बनाकर उन सम्मान को वापस कर देना चाहिए। अगर पति यह समझता है की आगामी भविष्य में भी उसके ऊपर स्त्री धन का दोबारा आरोप लगाया जा सकता है। पत्नी का चरित्र ऐसा ही है तो कोर्ट के निर्णय तथा हस्तक्षेप से ही स्त्रीधन को लौटाना चाहिए। क्योंकि स्त्री कोई एक छोटा सामान भी आरोप लगाकर आपके खिलाफ स्त्री धन की मांग कर सकती है। इस छोटे से सामान पर भी सजा उतनी ही होगी जितना समस्त स्त्रीधन के लिए है। इसलिए पति को यहां विवेक से परिस्थितियों के अनुसार कार्य करना चाहिए।

अगर आपकी बात थाना स्तर पर पूर्ण रूप से स्त्रीधन के रूप में समाप्त हो जाती है तो अवश्य स्त्रीधन लौटा दें। किंतु उसमें आपके समक्ष संशय का विषय बनता है तो पूर्ण रूप से कोर्ट के हस्तक्षेप से ही स्त्रीधन लौटाएं ताकि उसकी प्रमाणिकता हो सके। कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद पत्नी आपके ऊपर स्त्रीधन का आरोप नहीं लगा पाएगी। जबकि थाने में स्त्री धन लौटाने के उपरांत वह दोबारा स्त्रीधन का आरोप आपके ऊपर लगा सकती है।

समापन

पूर्व काल में दहेज आदि नामों से कन्या को मिलने वाला सामान अलंकृत किया जाता था। वर्तमान समय में उन सामानों को जो कन्या के लिए दिया जाता है जिसमें दान, उपहार, पैसे, गहने आदि होते हैं उन्हें हम स्त्रीधन के रूप में जानते हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 406 स्त्रीधन को संरक्षित करता है। कन्या अपने स्त्री धन की मांग कानूनी प्रक्रिया के दरमियान या फिर विवाह विच्छेद अन के उपरांत भी कर सकती है। स्त्रीधन पर पूर्ण रूप से कन्या का अधिकार होता है इसलिए वह किसी भी परिस्थिति में स्त्री धन प्राप्त कर सकती है। स्त्रीधन पर कन्या के अतिरिक्त उसके पति का भी अधिकार नहीं होता है। साथ रहते हुए उन सामानों का उपभोग पति पत्नी दोनों मिलकर कर सकते हैं, मगर स्त्रीधन पर मालिकाना हक केवल और केवल कन्या का होता है।

उपरोक्त लेख में हमने स्त्रीधन क्या होता है? कानून में इसका क्या अनुवाद है? उसको अपने विवेक के आधार पर उल्लेखित किया है। आशा है उपरोक्त लेख आपको आपके ज्ञान तथा शिक्षा में कारगर सिद्ध हुआ हो। अपने सुझाव तथा विचार कमेंट बॉक्स में लिखें ताकि हम लेख सुधार सहित प्रस्तुत कर सकें।

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