वैसे तो शादी का बंधन पवित्र माना गया है, जब तक दोनों पक्ष एक दूसरे का आदर करते हुए सम्मान सहित एक दूसरे के साथ रहे तब तक रिश्ता अच्छा रहता है। कुछ ऐसी परिस्थितिया शादी के बंधन में कड़वाहट उत्पन्न करती है, जिससे रिश्तो के बीच दूरियां बढ़ती जाती है। दूसरों की सलाह रिश्तो के बंधन में एक ऐसी दरार पैदा करती है जो कभी भरी नहीं जा सकती। ऐसी ही कुछ परिस्थितिया उत्पन्न होती है जिसमें तलाक लेकर एक दूसरे से अलग होना ही उचित होता है। प्रस्तुत लेख में हम उन कारण का उल्लेख कर रहे हैं।
Kya Talak Lena Sahi Hai चरित्रहीन पत्नी से तलाक कैसे ले
शादी का बंधन एक दूसरे को समझना एक दूसरे का आदर भाव करना एक-दूसरे की कमियों को नजर अंदाज कर प्रगति का मार्ग दिखाना। जीवन के डगर में एक दूसरे का हाथ पकड़ कर चलना यह शादी का मतलब होता है। केवल शारीरिक सुख ही शादी का लक्ष्य नहीं होता। क्योंकि शारीरिक सुख तो बाजार में भी मिल जाता है। जब शादी के रिश्ते में कड़वाहट, अविश्वास जैसी परिस्थितियां उत्पन्न हो और लंबे समय तक उसमें सुधार की कोई गुंजाइश न हो तो तलाक लेकर एक दूसरे को आजाद कर देना ही उचित होता है।
अगर आपकी पत्नी क्रूर है, आपके परिवार तथा आपकी आधार तथा सम्मान और मानवीय भावनाओं को ठेस पहुंचती है तो तलाक उचित है। अगर आपकी आयु काम है आप पुनः विवाह कर सकते हैं तो आपके लिए तलाक लेना उचित है।
Talak Kaise Le Sakte Hai पत्नी द्वारा मानसिक उत्पीड़न कैसे साबित करें Patni Ke Dwara Krurta
Patni Talak Na De To Kya Karen
तलाक लेना या देना पति-पत्नी के हाथ में नहीं होता है। अगर कोर्ट में मुकदमा दायर किया जाता है, और मुकदमे का आधार तलाक को पुख्ता करता है तो अदालत तलाक की मंजूरी देती है। अगर पत्नी निरंतर पति को प्रताड़ित करती है उसके घर वालों को झूठे मुकदमों में फसाती है, अनेकों ऐसे अत्याचार जिनको विभिन्न रूपों में प्रदर्शित किया जा सकता है। ऐसे कार्य करती है तो अदालत उसे पत्नी द्वारा किए जा रहे निरंतर अत्याचार का अध्ययन कर पति को तलाक देकर शादी के बंधन से मुक्त कर देती है।
बीते कुछ समय पहले अदालत ने माता-पिता से अलग रहने की निरंतर जिद पर पति को तलाक देने का कार्य किया। इतना ही नहीं कई ऐसे फैसले माननीय उच्च न्यायालय द्वारा पारित किए गए जिसमें पत्नी के द्वारा झूठे मुकदमे और प्रताड़ना को आधार बनाकर तलाक स्वीकृत किया गया।
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Kya Ladki Talaq Le Sakti Hai
आमतौर पर यह देखा जाता है तलाक का मुकदमा पुरुष दायर करता है। पुरुष द्वारा तलाक का मुकदमा दायर करने पर महिला को अनेकों प्रकार से फायदा और कानूनी संरक्षण प्राप्त होता है। न्यायालय भी पारिवारिक मुकदमों में जल्दी हस्तक्षेप करने से बचती है, विशेष कर जब तलाक का मुकदमा हो। न्यायलय तलाक के अधिकतर मुक़दमे टालने का प्रयास ही करती है। जब बात हद से आगे बढ़ जाती है दोनों पक्ष तलाक के लिए प्रार्थना करते हैं, तब कोर्ट दोनों को मध्यस्थ, समझौते के माध्यम से आपसी तलाक लेने की सलाह देती है।
वहीं अगर महिला तलाक का मुकदमा दायर करती है तो न्यायालय प्रथम दृष्टि यह समझती है रिश्ते में महिला प्रताड़ित है। अगर तलाक नहीं दिया गया तो उसको संभावित खतरे हो सकते हैं। इसलिए न्यायालय का दृष्टिकोण पुरुष और महिला में अलग-अलग होता है। ऐसे अनेकों उदाहरण है जिसमें महिला द्वारा तलाक के आवेदन पर शीघ्र समाधान हो जाता है। वहीं पुरुष द्वारा तलाक दायर करने पर बरसों लग जाते हैं अंतिम फैसला मिलने में।
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तलाक के बाद पत्नी के अधिकार
संक्षेप में यह समझे कि जब तक पत्नी पुनर्विवाह नहीं कर लेती या आर्थिक रूप से वह सक्षम नहीं होती तब तक तलाक के उपरांत भी आपसे भरण पोषण प्राप्त करने का अधिकार रखती है। अगर आप तलाक के बाद किसी पुरुष के साथ उसका संबंध सिद्ध कर सकते हैं, तब आप भरण पोषण की राशि देने से बच सकते हैं। तलाक के बाद आप दूसरी शादी कर सकते हैं, किंतु जिससे आपका तलाक हुआ है उसको भरण पोषण देने से मन नहीं कर सकते। अगर आपने तलाक के समय एकमुश्त राशि अदा की है तब आपके ऊपर पत्नी का भरण पोषण का कोई अधिकार नहीं रहता।
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जहां तक हो सके रिश्ते बचाने का प्रयास किया जाना चाहिए। अगर रिश्ता किसी भी प्रकार से बचाया नहीं जा सकता और यह संभावना बनी रहती है कि समझौते के बाद पत्नी घर आकर पहले से बड़ा खतरा उत्पन्न करेगी, ऐसी स्थिति में तलाक का सहारा लिया जाना चाहिए। हर एक रिश्ते की या मुकदमे की अलग-अलग प्रकृति होती है। आप अपने रिश्ते को समझ कर अपने विवेक से कार्य करें। अपने विद्वान अधिवक्ता से संपर्क करें और अपनी समस्याओं का निदान पाएं। उपरोक्त लेख केवल ज्ञान के निमित्त लिखा गया है।