अरनेश कुमार वर्सेस बिहार Arnesh Kumar vs State of Bihar Judgement in Hindi

By | 05/07/2023

कानून का कार्य अपराधी को नियमों के अनुसार दंड तय करना है। अपराध के अनुसार निर्धारित दंड अपराधी को मिल सके इसके लिए प्राथमिक चरण में पुलिस की कार्यवाही अपेक्षित होती है। पुलिस घटना की जांच तथा विवेचना के उपरांत चार्ज शीट तैयार कर कोर्ट में दंड प्रावधान के लिए अपराधी को प्रस्तुत करती है। ऐसे में दोषी को सजा मिल पाती है और निर्दोष का बचाव हो पाता है। प्रस्तुत लेख में हम अर्नेश कुमार वर्सेस बिहार सरकार के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के संदर्भ में जानकारी देंगे जो गिरफ्तारी के संदर्भ में मार्गदर्शन करता है।

Arnesh Kumar vs State of Bihar Judgement in Hindi

सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2 जुलाई 2014 को अर्नेश कुमार वर्सेस बिहार सरकार के संदर्भ में एक आर्डर पास किया जिसमें स्पष्ट रूप से आदेशित था 7 वर्ष से कम की सजा वाले मामले में पुलिस आवश्यकता नहीं होने पर गिरफ्तारी नहीं करेगी। इस प्रकरण में माननीय न्यायलय ने विशेष रुप से घरेलू हिंसा IPC 498A or DV Act  जिसमें संज्ञेय अपराध, तथा अपराधिक प्रवृत्ति का व्यक्ति ना हो ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। इस आर्डर में अन्य प्रावधान भी बताए गए हैं जिसमें पुलिस अधिकारी मजिस्ट्रेट आदि की जिम्मेदारी भी तय की गई है। ऑर्डर की अवहेलना करने वाले अधिकारी पर कोर्ट की अवमानना तथा विभागीय जांच का भागी बनेगा।

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अर्नेश कुमार के मुकदमे का सार-

अर्नेश कुमार की पत्नी श्वेता किरण ने अरनेश कुमार तथा अपने साथ-ससुर पर दहेज प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज किया।इस मुकदमे में मारपीट तथा 8 लाख रुपया, मारुति कार, एयर कंडीशनर, टेलीविजन आदि सामान की मांग का जिक्र किया। दहेज नहीं मिलने पर लड़के की शादी कहीं और करा देंगे ऐसी धमकी भी दी गई।

अर्नेश कुमार ने उपरोक्त आरोपों को झूठा बताया और एंटीसिपेटरी बैल की मांग की। अरनेश को एंटीसिपेटरी बैल प्राप्त नहीं हो सकी, इस कारण वह हाईकोर्ट की शरण में पहुंच गया।

हाईकोर्ट ने तथ्यों की जांच करते हुए माना कि महिलाएं वर्तमान समय में IPC की धारा 498A का दुरुपयोग कर रही है। इस कारण कोर्ट में इस धारा के अंतर्गत अभूतपूर्व वृद्धि देखी जा रही है। महिलाएं अपने ईगो की लड़ाई में पति और उसके संबंधियों पर मुकदमे दर्ज करवा रही हैं।

इस कानून का निर्माण महिलाओं को ढाल के रूप में प्रयोग करने के उद्देश्य से किया गया था। महिलाओं ने इस कानून का प्रयोग हथियार के रूप में आरंभ कर दिया है। यह महिलाओं के लिए सरल और सुलभ माध्यम बन गया है जिससे वह अपने पति और उनके संबंधियों को तत्काल गिरफ्तार करवा सकती है। यह कानून के नजर में गलत प्रक्रिया है जिसमें पति के साथ साथ उसके संबंधियों को भी मुकदमे में फंसाया जा रहा है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने भी IPC 498A में झूठे मुकदमों का आश्चर्यजनक रिपोर्ट पेश किया है, जिसमें पति और उनके संबंधियों पर दर्ज किया गया था इसकी संख्या 93.6% है।

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कई मामलों में यह देखने को मिलता है पुलिस भ्रष्टाचार में लिप्त होकर पति और उसके संबंधियों को बिना रिपोर्ट, जाँच आरंभ किए गिरफ्तार करती है, जबकि यह मुद्दा गंभीर और संवेदनशील है।

पुलिस को CrPC की धारा 41A के अंतर्गत बिना किसी वारंट और मजिस्ट्रेट के आदेश गिरफ्तार करने में सक्षम है, ऐसे में भ्रष्ट पुलिस इस कानून का दुरुपयोग भी करते हैं।

घरेलू हिंसा या दहेज प्रताड़ना केस में पुलिस गिरफ्तारी से पहले किस को पूर्ण रूप से छानबीन करेगी और जब तक आवश्यकता ना हो तब तक गिरफ्तार करने से बचेगी। अगर 7 साल से कम की सजा है तो गिरफ्तार करने की कोई आवश्यकता तब तक नहीं है जब तक व्यक्ति ने संज्ञेय अपराध ना किया हो या वह अपराधी प्रवृत्ति का ना हो या कोई ऐसा खतरा ना हो जिससे साक्ष्य तथा गवाहों को नुकसान पहुंचा सके।

गिरफ्तारी की पूर्ण प्रक्रिया लिखित और रिकॉर्ड पर होनी चाहिए, गिरफ्तार करने से पूर्व पुलिस अपराधी को सूचित करेगी।

अंत में सुप्रीम कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाते हुए कहा CrPC की धारा 41 के तहत अपराधी को गिरफ्तार करने का ऑर्डर मजिस्ट्रेट से प्राप्त करना होगा। इस गिरफ़्तारी के लिए वारंट की आवश्यकता होगी, इसके बिना यह गलत प्रक्रिया मानी जाएगी।

जब तक आवश्यक ना हो पुलिस ऑफिसर अपराधी को गिरफ्तार नहीं करेगी।

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सभी राज्य सरकार तथा पुलिस ऑफिसर को सूचित करने का निर्देश दिया जाता है कि IPC की धारा 498A के तहत जब तक पूर्ण रूप से छानबीन नहीं की जाती तब तक धारा 41 के तहत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। केस दर्ज होने के उपरांत अपराधी को 41A के तहत नोटिस देकर उपस्थित होने के लिए कहा जाएगा।

कोई भी पुलिस ऑफिसर उपरोक्त ऑर्डर को मानने में विफल होता है तो उसके खिलाफ कोर्ट की अवमानना तथा विभागीय जांच का आदेश दिया जाएगा।

बिना रिकॉर्ड और वैलिड रीजन के गिरफ्तारी मजिस्ट्रेट की जवाबदेही होगी और कोर्ट की अवमानना होगी।

उपरोक्त सख्त टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने IPC 498A और दहेज निषेध कानून की धारा 4 के तहत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी। यह कोर्ट का लैंड मार्क जजमेंट (आधरभूत आर्डर) साबित हुआ जो आज तक प्रयोग में लाया जा रहा है। इस कानून के तहत डोमेस्टिक वायलेंस केस में गिरफ्तारी से बचाव का लाभ प्राप्त हो रहा हैं।

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समापन

2 जुलाई 2014 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अर्नेश कुमार वर्सेस बिहार सरकार मुकदमे में जो दिशा निर्देश दिए हैं। उस दिशा निर्देश को उपरोक्त हमने व्याख्यात्मक रूप से आम बोलचाल की भाषा में लिखने का प्रयास किया है। जिससे सामान्य व्यक्ति उपरोक्त बातों को साक्षात्कार कर सके। यह शिक्षा के उद्देश्य से लिखा गया लेख है, सुधार की संभावना हमेशा बनी रहेगी। अपने विचार कमेंट बॉक्स में लिखें।

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