हिंदू धर्म में विवाह को पवित्र बंधन माना गया है, यह बंधन सात जन्मों का माना जाता है। जिसे निभाने के लिए स्त्री पुरुष दोनों पवित्र अग्नि के समक्ष संकल्प लेते हैं एक दूसरे को वचन देते हैं। परिवार जब संयुक्त रूप से रहा करती थी, तब यह बंधन और वचन कायम रहते थे। वर्तमान समय परिवारों का विघटन तथा व्यस्त जिंदगी और तमाम तरह की मानसिकताएं, परिस्थितियां संबंधों को प्रभावित करती रहती है। विवाह के उपरांत ही स्त्री-पुरुष में मतभेद आरंभ हो जाता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि विवाह का संपन्न होना भी भयंकर तनाव के बीच होता है। परिस्थितियां कुछ ऐसी निर्माण होती है कि नौबत तलाक तक पहुंच जाती है। घुट घुट कर जीवन यापन करने से बेहतर एक-दूसरे से छुटकारा पाना हो जाता है। अन्यथा इसके परिणाम दुष्प्रभावी होते है कितने ही ऐसे प्रकरण देखने को मिले हैं। जहां तनाव और आपसी वैमनस्य मनमुटाव के कारण स्त्री पुरुष अपनी जीवन लीला को समाप्त कर बैठते हैं। ऐसे में अपने जीवन को सुखद और आनंद पूर्वक बनाने के लिए तलाक एकमात्र सहारा बन जाता है।
तलाक किस आधार पर लिया जा सकता है (Talak Kaise Le Sakte Hai)
तलाक लेने के बहुत सारे आधार होते हैं जो सामान्य जीवन को प्रभावित करें समाज तथा परिवार की स्थितियों को ठेस पहुंचाए ऐसे कारण भी तलाक के लिए आधार बनते हैं जिसमें कुछ निम्नलिखित कारण हो सकते हैं।
1 झूठ बोलकर या दबाव बनाकर कराया गया विवाह तलाक का कारण हो सकता है।
2 विवाह के पश्चात पति या पत्नी का किसी अन्य के साथ संबंध होना।
3 पति अथवा पत्नी के साथ क्रूरता का व्यवहार करना।
4 दो वर्ष से अधिक समय तक पति-पत्नी का दूर रहना।
5 पति अथवा पत्नी का दूसरे धर्म को स्वीकार करना।
6 असाध्य रोग से ग्रसित होना।
7 धार्मिक आश्रम में प्रवेश करना तथा संसार का परित्याग करना।
8 सात वर्ष की अवधि तक गुमसुदा होना जिस के जीवित होने की सूचना किसी को नहीं होना भी तलाक का एक कारण बनता है।
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Talak Kaise Le Sakte Hai
जब वैवाहिक जीवन चलाने लायक नहीं रह जाता तब पति या पत्नी तलाक के लिए आगे बढ़ते है। तलाक मुख्यतः दो माध्यम हो सकते हैं – आपसी सहमति से तलाक तथा कोर्ट के माध्यम से तलाक। कोर्ट का अंततोगत्वा यह उद्देश्य होता है कि किसी का घर ना टूटे। कोर्ट स्वयं तलाक देने से परहेज करती है, वह आपसी समझौते से तलाक पर निरंतर जोर देती है। अगर आपसी समझौते से तलाक संभव नहीं होता तो वादी तथा प्रतिवादी कोर्ट में अपने साक्ष्यों के आधार पर किस को लड़ते हैं। केस/मुकदमे के निष्कर्ष तक पहुंचते हैं अतः तलाक पाते हैं। तलाक की प्रक्रिया मुख्यतः निम्नलिखित होती है-
1 आपसी समझौते के तहत तलाक
यह कोर्ट के बाहर की प्रक्रिया है जिसमें आपसी सहमति से तलाक का कार्य संपन्न किया जाता है। इसमें दोनों पक्षों का राजी होना आवश्यक है। कुछ कागजी कार्यवाही तथा आपसी लेनदेन की प्रक्रिया से यह कार्य सहज रूप से पूर्ण होती है। इसमें समय धन तथा परेशानी की समस्या से बचा जा सकता है। दोनों पक्ष में से कोई एक पक्ष राजी नहीं होता तो फिर कोर्ट के मुकदमे द्वारा तलाक की प्रक्रिया जारी रहती है। जिसमें संपूर्ण तत्वों की विवेचना करते हुए तलाक की कार्यवाही संपन्न होती है।
2 कोर्ट के माध्यम से तलाक
जब आपसी सहमति से तलाक संभव नहीं हो पाता तब पति या पत्नी कोर्ट की शरण में आते हैं। कोर्ट में अपने तलाक के कारणों को कानूनी रूप से वैध बताते हुए कार्यवाही को आगे बढ़ाते हैं। कोर्ट क्रूरता तथा विवाह आगे चलाने योग्य नहीं है अन्य परिस्थितियों पर बारीकी से ध्यान देकर तलाक के उचित निर्णय पर पहुंचता है। यह प्रक्रिया लगभग 5 साल की हो सकती है।
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अलग रखने की जिद करना पति के प्रति क्रूरता है- दिल्ली उच्च न्यायालय (Talak Kaise Le Sakte Hai)
मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की- बिना वजह ससुराल वालों से अलग रहने की पत्नी की जिद पति के प्रति यातनापूर्ण और क्रूर हरकत है। न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने पति को तलाक देते हुए यह टिप्पणी की।
पति ने क्रूरता का आधार पत्नी की बिना वजह अलग रहने की मांग को बताया था। कोर्ट ने अध्ययन में पाया पत्नी वास्तव में बिना उचित कारण अलग रहने की मांग कर पति को मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रही थी। महिला ने अपने बचाव में कोई उचित कारण नहीं बताया। माननीय न्यायालय ने पति के पक्ष में अपना फैसला रखा।
माननीय न्यायालय ने फैसला करते हुए यह भी कहा भारत में हिंदू परिवार से संबंध रखते हुए बेटों का पारंपरिक तथा न्यायिक रूप से यह दायित्व होता है कि वह अपने माता-पिता तथा बड़े-बुजुर्गों की देखभाल करें उन का भरण-पोषण करें। ऐसे में अलग रहने की जिद पति को क्रूरता का शिकार बनाता है।
अवैध संबंध के झूठे आरोप क्रूरता – दिल्ली उच्च न्यायालय (Talak Lene ke Upaay)
दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिनांक 16 अगस्त 2023 को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की अवैध संबंध के झूठे आरोप क्रूरता की श्रेणी में आते हैं। माननीय न्यायालय ने पत्नी द्वारा पति पर लगाए जा रहे अवैध संबंध के झूठे आरोपों को क्रूरता कहा है।
माननीय न्यायालय का मानना है कि पति-पत्नी के बीच विश्वास और आस्था का संबंध होता है। यही वैवाहिक रिश्ते को कायम करते हैं। इसमें अविश्वास के कारण दरार पड़ती है जो पति या पत्नी को मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है। यह क्रूरता की श्रेणी में आता है इस आधार पर तलाक को मंजूर किया जाना चाहिए।
उपरोक्त टिप्पणी के साथ माननीय उच्च न्यायालय ने पति की तलाक याचिका को स्वीकार करते हुए पति पक्ष में फैसला सुनाया।
महिला अपने आरोपों को साबित करने में असफल रही, जिसमें अपने पति पर अवैध संबंध का आरोप लगाया था।
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