पोक्सो एक्ट के तहत 18 वर्ष से कम लड़के तथा लड़की के साथ यौन हिंसा की रोकथाम का प्रावधान है। इस कानून को सन 2012 में लागू किया गया था। इस कानून का मकसद नाबालिगों के साथ हो रही यौन हिंसा को रोकना और कठोरतम सजा का प्रावधान करना था। समाज में बढ़ रहे नाबालिगों के प्रति यौन हिंसा को रोका जा सके। प्रस्तुत लेख में आफ पोक्सो एक्ट से संबंधित जानकारी हासिल करेंगे।
पोक्सो एक्ट क्या है POCSO Act in Hindi
“पोक्सो कानून का इरादा उन मामलों को दायरे में लाने का नहीं है, जहां बात प्रेम संबंधों की है” . मेघालय हाई कोर्ट
मेघालय हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बदलते हुए अपना फैसला सुनाया जिसमें कोर्ट का मानना था कि 16 साल के नाबालिग यह फैसला लेने में सक्षम है कि सेक्स करना सही है या गलत।
निचली अदालत में लड़की की मां ने भारतीय दंड संहिता की धारा 363, तथा पोक्सो कानून के अंतर्गत धारा 3 और 4 के तहत मुकदमा दायर किया था जिसमें लड़के को दोषी माना गया। लड़के ने मेघालय हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जहां उसने कोर्ट के समक्ष आपसी सहमति से सेक्स करने की बात कही। कोर्ट ने जांच किया और पाया 16 साल के नाबालिग यह फैसला लेने में सक्षम है कि सेक्स करना गलत है या सही।
यह मामला प्रेम से संबंधित है, पोक्सो कानून का इरादा उन मामलों को अपने दायरे में लाने का नहीं है जहां लड़के और लड़कियों के बीच प्रेम संबंध है। कोर्ट ने यह भी कहा पोक्सो कानून के कड़े नियमों को बदलने की आवश्यकता भी, वर्तमान परिपेक्ष में देखी जा रही है फैसले को बदलते हुए लड़के को राहत दी।
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पॉक्सो एक्ट में कितनी सजा है
पोक्सो एक्ट की विभिन्न धाराओं में अनेक प्रकार की सजा का प्रावधान है जिसमें 3 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तथा मृत्यु दंड तक शामिल है। यह गुनाह की स्थिति को देखते हुए निर्णय लिया जाता है की गुनाह कितना गंभीर और किन परिस्थितियों में हुआ है। कई मामलों में मृत्यु दंड की सजा भी दोषियों को सुनाई गई है।
पीड़िता के निजी अंगों पर चोटों का न होना पोक्सो की कार्यवाही को बाधित नहीं कर सकता।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया है कि पीड़िता के निजी अंगों पर चोट का ना होना, यह साबित नहीं करता है कि उसके साथ यौन दुर्व्यवहार नहीं हुआ। ट्रायल कोर्ट ने मुकदमे की पूरी सुनवाई करते हुए दोषी को 12 साल की कठोर सजा का फैसला सुनाया था। इस फैसले को दिल्ली उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा।
पीड़िता ने डॉक्टर का बयान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज कराया था। जिसमें स्पष्ट रूप से बताया गया था आरोपी ने के निजी अंगों में उंगली डाली थी जिसके कारण उसे काफी पीड़ा का सामना करना पड़ा था। इस आरोप को पुष्ट करने के लिए पीड़िता की मां ने भी जो बयान दिया था। माँ का बयान पीड़िता के बयान को पुष्ट करता है। अदालत ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को भी बरकरार रखा, जिसमें उसे POCSO अधिनियम के तहत 12 साल के कठोर कारावास और आईपीसी की धारा 363 और धारा 342 के तहत क्रमशः तीन साल और छह महीने के कठोर कारावास की सजा सुनाई।
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समापन
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